BA Semester-1 History - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :325
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2628
आईएसबीएन :000000000

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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास के नवीन पाठ्यक्रमानुसार प्रश्नोत्तर

3
वैदिक एवं उत्तर वैदिक काल
(Vedic and Later Vedic Period) दीर्घ एवं लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?

अथवा

पूर्व-वैदिक काल में आर्यों की सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।

अथवा

वेद का शाब्दिक अर्थ क्या है, इनकी संख्या कितनी है? स्पष्ट कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पूर्व- वैदिक काल में आर्यों की सामाजिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
2. पूर्व-वैदिक काल में समाज की धार्मिक एवं आर्थिक स्थिति की विवेचना कीजिए।
3. वेद का शाब्दिक अर्थ 'क्या है?


उत्तर-

वेद (The Vedas)

ई. पूर्व छठी शताब्दी पूर्व के इतिहास को जानने के मुख्य साधन वेद, पुराण तथा महाकाव्य हैं। वेद सबसे प्राचीन हैं, वेद भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है, 'वेद, शब्द विद, धातु से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है - 'ज्ञान होना, आर्यो का विश्वास था कि वेदों की रचना ईश्वर ने की है। वेदों में ज्ञान का भण्डार छिपा है, वह चिरन्तन और चिरकालीन है। वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। वेद किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा किसी निश्चित काल में नहीं लिखे गये। विभिन्न कालों में भिन्न ऋषियों ने जिन ग्रन्थों की रचना की, उनका संकलन ही वेद है, प्रो. मैक्समूलर ने कहा है- 'वेद विश्व इतिहास में एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति करते है।"
वेदों की संख्या चार हैं - (1) ऋग्वेद, (2) यजुर्वेद, (3) अथर्ववेद, (4) सामवेद।
(i) ऋग्वेद: यह सबसे प्राचीन वेद है इसमें ऋचाओं, स्तुति मंत्रों का संकलन है विभिन्न देवी देवताओं की स्तुतियाँ की गयी हैं, इसमें 10 मण्डल तथा 1017 सूक्त हैं।
(ii) यजुर्वेद : इस वेद में यज्ञ की विधि का वर्णन है। यह भाष्यकार पतञ्जलि के समय में इसकी 101 शाखाओं में पायी जाती थी।
 (iii) अथर्ववेद : अथर्ववेद सबसे बाद की रचना है। इसमें जादू टोना, विज्ञान तथा चिकित्सा सम्बन्धी जानकारी मिलती है। इसकी दो शाखायें हैं (1) शौनक, (2) पिघलाद, इसमें कुल मंत्रों की संख्या 6000 है। इसमें से बहुत से मंत्र ऋग्वेद से लिये गये हैं।
(iv) सामवेद: सामवेद संगीतमय वेद है, इसमें यज्ञ के समय मंत्रों के उच्चारण के लिए उन्हें संगीतबद्ध कर दिया गया है। इस वेद मे 1810 मंत्र हैं, इनमें 261 मंत्रों की पुनरावृत्ति हुई है।
1. प्रलय से पूर्व का इतिहास : वायु पुराण के अनुसार परम आनन्द परब्रह्म पिता सारे संसार का शासक था, आनन्द ने ही वर्णव्यवस्था स्थापित की थी. इनका उत्तराधिकारी मनु हुए। प्रलय के बाद केवल  मनु तथा श्रद्धा ही जीवित रहे थे और उन दोनों के सहयोग से फिर संसार का सृजन हुआ।
2. प्रलय काल (3100 ई. पूर्व) : शतपथ ब्राह्मण के अनुसार वैवस्वत मनु को हाथ धोते एक मछली प्राप्त हुई थी जिसने प्रलय के समय मनु की रक्षा की थी तथा वैवस्वत मनु के 10 पुत्र हुए, उन्होने संसार का नवनिर्माण किया।
3. ययाति काल (3000-2700 ई. पूर्व) : ययाति के पाँच पुत्र हुए और ययाति के पिता नहुष्क हुए। इन्होंने ही गुजरात में यदुवंश की स्थापना की, सूर्यवंशी इक्ष्वाकु के 100 पुत्र थे।
4. मान्धाता का काल (2750-2550 ई. पूर्व) : इस काल में मान्धाता ने सूर्यवंश के गौरव को बढ़ाया।
5. परशुराम काल (2550-2350 ई. पूर्व) : इस काल में क्षत्रिय हैहय वंश तथा ब्राह्मण भृगुवंश का संघर्ष हुआ। इसी समय अयोध्या में राजा हरिश्चन्द्र हुए जिन्होंने विश्वामित्र से संघर्ष किया।
6. श्री रामचन्द्र काल (2350-1950 ई. पूर्व)- राजा सगर के पश्चात् अयोध्या का राज्य दुर्बल हो गया था, भगीरथ ने फिर अयोध्या के गौरव को बढ़ाया, इसके पश्चात् शिवि, दिलीप, रघु अज तथा राजा दशरथ हुए।
7. श्रीकृष्ण युग (1950-1400 ई. पूर्व) : श्रीकृष्ण के समय द्वापर युग का आरम्भ माना गया है जो महाभारत के युद्ध से समाप्त हुआ, इस युग में पांचाल, कौरव और यादव वंश प्रमुख थे।

राजनैतिक व्यवस्था (Political System)

आर्य और युद्ध (Aryans and Battles) : ऋग्वेद में आर्य और अनायों के युद्धों का उल्लेख प्राप्त होता है। उसका वर्णन निम्न है -
पारस्परिक युद्ध : आर्यों का इतिहास युद्धों से ही प्रारम्भ होता है क्योंकि वे एक ओर आपसी युद्ध में व्यस्त थे और दूसरी ओर अनार्यों के युद्ध में। इन दोनों प्रकार के युद्धों का उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है।
(1) दस राजाओं से युद्ध : आयों के भरतवर्ग का राजा सुदास था जो वीर होने के साथ-साथ महत्वाकांक्षी भी था, जिस कारण से उनके पड़ोसी राजा उससे ईर्ष्या रखते थे। परिणामस्वरूप दोनों में युद्ध हुआ और भरतवर्ग का पुरोहित विश्वामित्र अत्यन्त योग्य था, जिसे कुछ समय बाद हटाकर उसके स्थान पर वशिष्ठ को राज्य पुरोहित बना दिया गया. इससे विश्वामित्र असंतुष्ट हो गया और उसने निकटवर्ती सभी पड़ोसी राजाओं का एक संघ बनाया और उसकी सहायता से सुदास पर आक्रमण कर दिया।
युद्ध प्रणाली:  आर्य लोग युद्ध के समय अपने धनजन की रक्षा हेतु विशिष्ट प्रकार के बने हुए दुर्गों में शरण लेते थे जिन्हे 'पुर' कहा जाता था। दुर्ग पाषाण अथवा धातु के बने होते थे इनके चारों ओर चहारदीवारी भी होती थी। आक्रमणकारी सर्वप्रथम आग लगाकर चहारदिवारी नष्ट करते थे।
सेना का स्वरूप- युद्ध करने हेतु आर्यों के पास सेना होती थी। राजा और राजन्य रथ पर चढ़कर लड़ते थे और साधारण लोग पैदल ही लड़ते थे। यह घोड़ों से भी परिचित थे, इसलिए उनकी सेना में रथ-घोड़े और पैदल सिपाही भी हुआ करते थे, परन्तु ऋग्वेद में अश्वारोहियों का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।
सैनिक इकाइयाँ- आर्यों की सेना में सैनिकों की विभिन्न इकाइयाँ होती थीं या नहीं इस विषय में अधिक जानकारी नहीं है। ऋग्वेद मे शर्ध, व्रात और गण आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है, शायद यह सेना की इकाइयों के नाम हों।
सेना का सर्वोच्च अधिकारी स्वयं राजा : ऋग्वेदकालीन पूर्णतया युद्धों का युग था अतः राजा स्वतः सम्पूर्ण सेना का अधिकारी होता था और उसका स्वयं संचालन करता था।
ऋग्वेदकालीन शासन व्यवस्था (Rigvedic Administrative System) : आर्यों की राजनीतिक व्यवस्था की हमें अत्यधिक जानकारी ऋग्वेद के अनुशीलन से ज्ञात होती है।
डॉ.ए. राधाकुमुद मुकर्जी ने ऋग्वैदिक शासन व्यवस्था को निम्न आरोही क्रम में प्रस्तुत किया है - (1) कुटुम्ब (ग्राम या कुल) (2) ग्राम, (3) विश, (4) जन, (5) राष्ट्र।
कुटुम्ब- परिवार ही सामाजिक व्यवस्था की इकाई था तथा इसका प्रमुख कुलाप कहलाता था, कई परिवारों के मिलने से ग्राम बनता था जिसका प्रमुख ग्रामिणी होता था।
विश : विश के बारे मे जितनी अभी तक जानकारी प्राप्त है - उसके आधार पर इसके बारे में अभी तक अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है विश प्रशासनिक अंग था. कबीले की तरह का एक भाग था
जन- विश के ऊपर जन था, इसका ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है, जिन्हें पंच जन यादव जन: और 'भारत जनः, कहा जाता था और राजा 'जन' या लोगों को रक्षण कहा गया था ('गुप्त जनस्य )।
राष्ट्र : देश के लिए राष्ट्र शब्द का प्रयोग किया गया है। इससे संघात्मक सरकार होने का अनुमान लगाया जाता है।
डॉ. राय चौधरी के अनुसार “कुछ वैदिक सन्दर्भों में इन दोनों का पारस्परिक अन्तर स्पष्ट है और ईरानी समानार्थक तत्वों से प्रतीत होता है यदि 'जन' को ईरानी 'जन्त' के बराबर समझा जाये तो विश 'जन का एक भाग मालूम होता है।
राजा : राजन् शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है - और बाद में राजा रहित विधान के लिए भी ये शब्द प्रयोग किये गये है। प्रो. आप्टे के अनुसार ऋग्वेदिक काल में राजतंत्र ही साधारणतः प्रचलित था।
राजा का चुनाव - एक राजा के बाद उसके वंश का दूसरा व्यक्ति ही राजा होता था पर ऐसे भी प्रमाण मिले है कि परिस्थिति के अनुसार प्रजा राजवंश और सामतों में से किसी को राजा चुन सकती थीं।
राजा और प्रजा - राजा पर भी प्रजा की रक्षा का भार था और इसके बदले में प्रजा से यह आशा की जाती थी कि वह राजा की आज्ञाओं का पालन करे। राजा के प्रति स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने के लिए भेट अथवा उपहार दिया जाता था जिन्हें वैदिक साहित्य में 'बलि' कहा गया है।
कर व्यवस्था : प्रजा से कर भी वस्तु के रूप में लिया जाता था। यह कर अनिवार्य और ऐच्छिक भी था। राजा को 'प्रजा' की सहायता करने वाला कहा गया है बल्कि यह भूमि का स्वामी न होकर केवल युद्ध का ही स्वामी था।
राजपुरोहित का स्थान - राजा धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों की पूर्ति हेतु राजपुरोहितों की नियुक्ति करता था। राजा के विस्तृत अधिकारो पर नियंत्रण करने वाले भी इसे कहा गया है। प्रो. कीथ के अनुसार -
गुप्तचर व्यवस्था- राजा राज्य की जानकारी के लिए गुप्तचर की भी नियुक्ति करता था।
दूतों और सन्देशवाहकों की नियुक्ति - राजा अपनी शासन व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए. एक राज्य का दूसरे राज्य से सम्पर्क स्थापित करने हेतु दूतों और सन्देशवाहको की नियुक्ति करता था।
राजा न्यायाधीश के रूप में - राजा दीवानी मुकदमों की अन्तिम अपील सुनता था और फौजदारी मुकदमों के सम्बन्ध में भी उसे विस्तृत अधिकार प्राप्त थे, वह स्वयं दण्ड मुक्त था। परन्तु राज्य की सर्वोच्च शक्ति होने के कारण दण्ड का आवश्यकतानुसार प्रयोग करता था।
राजा की वेशभूषा : राजा के लिए शानदार पोशाक, एक राजप्रासाद और सदैव साथ रहने वाले सहयोगी, नौकर, एक हजार स्तम्भों और एक हजार मेहराबों वाले राजप्रासादों का भी उल्लेख मिलता है।
मन्त्रि-परिषद : वैदिक साहित्य अथर्ववेद और तैत्तिरीय संहिता से यह ज्ञात होता है कि इस युग में राजा को सहायता देने के लिए मन्त्रि-परिषद् का निर्माण किया गया था। उसके मंत्री 'रनिन' कहलाते थे, इनका महत्वपूर्ण स्थान होने के कारण रत्लिन को राज्य मुकुट का एक रत्न माना जाता था. मंत्री कई हुआ करते थे।
सभाएँ : राजा के अधिकारों पर नियंत्रण रखने वाली दो संस्थाओं का 'सभा और समिति के रूप में उल्लेख प्राप्त होता है जिन्हें प्रजापति की दुहितायें भी कहा गया है।
(अ) सभा : यद्यपि सभा का उल्लेख ऋग्वेद से मिलता है पर इसके कर्तव्यों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती है। सम्भव है इसे सम्मेलन के पर्याय के रूप में प्रयोग किया गया हो। इसका प्रयोग सार्वजनिक और सामाजिक सम्मेलन तथा सभाओं के लिए 'सभाकक्ष' शब्द का प्रयोग किया गया है। सभा के प्रसिद्ध व्यक्ति को 'सभासद' और 'सभा के योग्य व्यक्ति को समर्थ कहा गया है और यह भी उल्लेख मिलता है कि सभा उत्तम जन्म वाले 'सुजात' और सभा के योग्य व्यक्ति 'आर्य सभावान' का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
(ब) समिति : समिति के यद्यपि कार्यों का उल्लेख नही हुआ पर इसका उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है, समिति में राजा की उपस्थिति अनिवार्य थी। एक संदर्भ के अनुसार राजा अजेय शक्ति के साथ 'समिति से भेंट करता है और उसके सदस्यों का हृदय जीत लेता है और उनके प्रस्तावों को क्रियान्चित करता है। एक अन्य उद्धरण से राजा और समिति का एक होना राज्य की समृद्धि के लिए आवश्यक और अनिवार्य है।
विधान : डॉ. जायसवाल के अनुसार समिति धार्मिक जीवन का प्रबन्ध करती थी। विधाता का उद्भव समिति के पूर्व ही हो चुका था, ऋग्वेद में अग्नि को विधाता' या केतु या ऋग कहा गया है।
न्याय व्यवस्था : ऋग्वेद काल में न्याय व्यवस्था के बारे में बहुत कम ही प्रमाण मिलते हैं। क्षतिग्रस्त करने वाले को क्षतिपूरक के रूप में उसे धन देना पड़ता था। कंजूस व्यक्तियों को वैसा ही दण्ड मिलता था, जैसा कि किसी के साथ अपराध करने पर मिलता था, 'उग्र' और 'जीवगृध' कर्मचारी वर्ग का उल्लेख प्राप्त होता है।

सामाजिक व्यवस्था (Social System)

सभ्यता का आधार- आर्यों की सामाजिक व्यवस्था का ज्ञान हमें वेदों से प्राप्त होता है, क्योंकि आर्य लोग वेदों को अनादि अनन्त तथा ईश्वर कृत मानते थे। प्रारम्भ में इन्हें लिपिबद्ध करना पाप समझा जाता था बल्कि उन्हें कंठस्थ कर लिया जाता था इसीलिए इन्हें श्रुति भी कहा गया है। वेदों के गद्य भाग को यजुषा और पद्य भाग को ऋचा कहा गया है।
वदों की संख्या : वेदों की कुल संख्या चार है - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद। इनके द्वारा तत्कालीन सामाजिक स्थिति पर पूर्णरूपेण प्रकाश पड़ता है।
संयुक्त परिवार प्रणाली: इस युग में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। एक परिवार के अन्तर्गत माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री आदि को शामिल किया जाता था जो आपस में एकदूसरे से बहुत प्रेम करते थे।
स्त्रियों की स्थिति : समाज के अन्तर्गत स्त्रियों को पर्याप्त उच्च स्थान प्राप्त था और इन्हें पति की अर्द्धाङ्गिनी समझा जाता था। आर्य लोग पुत्र और पुत्री दोनों को परिवार के लिए शुभ मानते थे। पुत्रियों को युद्ध आदि करने की छूट दी जाती थी, कन्याओं की शिक्षा का भी उच्चकोटि का प्रबन्ध था ऋॠग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता विश्ववारा आदि अनेक विदुषी कन्याओं के उल्लेख मिलते हैं. इन्होंने भी ऋषियों की भाँति अनेक ऋचाओं की रचना की थी।
विवाह प्रथ - पूर्व-वैदिक काल में विवाह पवित्र बन्धन माना जाता था। यह विश्वास था कि इसके शिवा सृष्टि की रचना सम्भव नहीं है। विवाह पूर्ण वयस्क होने पर ही सम्भव होता था, ऋग्वेद के अध्ययन से ज्ञात होता है कि कन्याये अपने पिता के घर ही रहकर वृद्धा हो गई थीं।
स्वयम्बर एवं पर्दा प्रथा -
ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों को अपने जीवन साथी को चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता थी ताकि उनका जीवन सुखी हो सके। इस युग में पर्दा प्रथा नहीं थी। पुनर्विवाह : इस युग में सन्तान की प्राप्ति के लिए पुनर्विवाह का भी उल्लेख प्राप्त होता है और इसे वैधानिक मान्यता प्राप्त थी।
सहपतिकता : इस युग में एक पत्नी के कई पति हुआ करते थे। इसका हमें उल्लेख भी मिलता है।
सती प्रथा : ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों के अपने पति के साथ सती होने का भी उल्लेख मिलता है।
अनुलोम और प्रतिलोम विवाह : ऋग्वेद में वर्णन के अनुसार इस युग में अनुलोम और प्रतिलोम विवाहों का प्रचलन था। यद्यपि समाज में केवल वैधानिक और नियमित विवाह संस्कार की मान्यता थी।
वर तथा वधू के गुण एवं दोषों पर ध्यान : विवाह होने के पूर्व वर और वधू के गुण और दोषों को ध्यान में रखकर ही यह सम्बन्ध जन्म जन्मान्तर के लिए स्थापित किया जाता था।
मनोरंजन के साधन- आर्य लोग अपने मन बहलाव के प्रमुख साधनों के रूप में रथ-दौड़, घुड़दौड़, मल्ल युद्ध तथा आखेट करते थे, आर्य बड़े साहसी और युद्ध प्रेणी थे।
(अ) आखेट : आर्य लोग आखेट को अपने मनोरंजन का एक अंग मानते थे और वे जंगल जाकर वहाँ पर हाथी, शेर, भालू, भैंस और सुअर का शिकार करते थे।
(ब) द्यूत क्रीड़ा : वैदिक साहित्य में जुआँ खेलने का भी उल्लेख प्राप्त होता है। ऋग्वेद में एक स्थान पर एक हारे जुआरी के करुण विलाप का वर्णन प्राप्त होता है।
(स) संगीत तथा नृत्य : आर्य लोग संगीत तथा नृत्य में काफी रुचि रखते थे और अपने मनबहलाव के रूप में मृदग झॉझ, वीणा, तथा शंख आदि वाद्य-यंत्रों का प्रयोग करते थे। यही उनके मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।
शिक्षा का स्थान- ऋग्वैदिक युग में शिक्षा का बड़ा ही महत्व था क्योंकि शिक्षा ही आध्यात्मिक ज्ञान की ओर प्रेरित करती थी। शिक्षा प्राय मौखिक दी जाती थी, श्लोकों को याद करने पर काफी जोर दिया जाता था।
पुत्रियों को भी बालकों की भाँति शिक्षा पर काफी जोर दिया जाता था। इस काल में लेखन का प्रादुर्भाव हुआ अथवा नहीं इसका ऋग्वेद में कहीं भी उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।
वेश-भूषा : आर्य लोग केवल तीन प्रकार के कपड़े पहनते थे। इसका उल्लेख हमें मिलता है नीवी, वास, अधिवास, ये कपड़े सूती, ऊनी अथवा रेशमी हुआ करते थे, आर्यों को चमकीले और बहुरंगी वस्त्र अधिक पसंद नहीं थे।
आभूषण तथा श्रृंगार : ऋग्वैदिक युग मे स्त्रियाँ और पुरुष दोनों ही आभूषणों और श्रृंगार को महत्व देते थे। उस समय मुख्य रूप से कंकण, कुण्डल. अंगूठी-भुजबन्द नूपुर तथा निष्क आदि का प्रयोग करते थे, निष्क गले में पहनने वाला एक प्रकार का आभूषण था।
दाहकर्म : ऋग्वेद में दाहसंस्कार का वर्णन भी प्राप्त है. इस अवसर पर मृतक को विदाई सन्देश दिया जाता था। उसके शरीर को रखने के लिए पृथ्वी माता से प्रार्थना की जाती थी ताकि वह उसकी रक्षा करें।
खान-पान : आर्य लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ, जौ, उड़द था, इसके अलावा वे दूध, घी, दही, फल और सब्जियों का भी प्रयोग करते थे। ये लोग माँस खाते थे पर गाय को अबध्य बतलाया गया है, ऋग्वेद में नमक का कहीं पर उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।
वर्ण व्यवस्था (Varna System) : ऋग्वैदिक युग में तीन प्रकार के वर्णों का प्रायः उल्लेख प्राप्त होता है-
(1) ब्राह्मण : ब्राह्मणों का कार्य मंत्रों की रचना करने वाला और अध्ययन एवं अध्याप करने वाला कहा गया है तथा यज्ञ आदि कराने का कार्य इसी का होता था। अपनी विद्वता के कारण समाज में इनका सम्मानपूर्ण स्थान था।
(2) क्षत्रिय : अथवा राजन्य : राजन्य अथवा क्षत्रिय जिन्हें युद्ध करने वाला कहा गया है।
(3) विष : शेष जनता को विश् वर्ग में माना जाता था। इसका कार्य पशुपालन तथा कृषि था।
धार्मिक व्यवस्था (Religious System) - ऋग्वेद के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आर्य लोग अपने कार्य को सफल बनाने के लिए और अपने आराध्य को पाने के लिए देवताओं की आराधना करते थे, जिनका वैदिक साहित्य में उल्लेख प्राप्त होता है। साथ ही ऋग्वेद से आर्यों के विकसित आर्थिक जीवन पर प्रकाश पडता है।
देवता : यद्यपि देव शब्द के अर्थ पर भिन्न-भिन्न मत फिर भी देव शब्द के रूप में देवताओं को ही माना गया है जिनमें सूर्य, चन्द्र आदि की गणना की गई है।
दैवी शक्ति की ओर झुकाव : प्रकृति को आश्चर्यचकित करने वाली स्थिति को देखकर इस युग में मनुष्य भयभीत हुआ और कुछ से प्रभावित हुआ उसने सभी से प्रार्थना की और दान एवं प्रसाद का वितरण किया। तभी से प्रकृति के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित देव और उसके देवता आराध्य बन गये।
पृथ्वी तथा आकाश : आर्यों ने देखा पृथ्वी और आकाश अनन्त है, साथ ही पृथ्वी पर अन्न उत्पन्न होता है और अन्न से जीवन उत्पन्न होता है अतः उन्होने पृथ्वी और आकाश को अपना देवता मानकर उनकी आराधना की।
वरुण: वरुण को आकाश का देवता माना गया है. क्योकि यह आकाश ढक लेता है इसी से उसे वरुण की संज्ञा दी गई है। ऋग्वेद में उसके सर्वव्यापी होने का उल्लेख है तथा वे समस्त जीवों और उनके रहने के स्थानों को ढके हुए हैं।
मित्र : सूर्य की सविता, मित्र, पूषण तथा विष्णु के रूप में पूजा होती थी। सूर्य को देवताओं का मुख तथा अग्नि को नेत्र कहा गया है।
आप : ऋग्वेद में वरुण के साथ आप का भी उल्लेख हुआ है, आप का अर्थ होता है जल। ऋग्वैदिक मन्त्रकारों के अनुसार इसी आप से सृष्टि की रचना हुई है।
रुद्र : इन्हे तूफान और बिजली का देवता कहा गया है, अतः इन्हें क्रोधी भी बताया गया है। इनकी उपासना से अकाल मृत्यु नहीं हो सकती थी।
विष्णु : ऋग्वेद में नारायण के रूप में तीन पदों का उल्लेख प्राप्त होता है। इन्हें सम्पूर्ण संसार का पालनकर्ता कहा गया है।
सोम : सोम सूर्य और विद्युत से उत्पन्न बताया गया है। वह सूर्य के साथ चमकता है और अपने प्रकाश से अन्धकार को भगाता है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सोम पान करने वाला व्यक्ति अमर हो गया था। ऐसा उल्लिखत मिलता है, कहीं-कहीं सोम को चन्द्रमा माना गया है
इन्द्र : ऋग्वेद में सर्वाधिक शक्तिशाली देवता इन्द्र को भी माना गया और सबसे अधिक ऋचाओं में उसकी स्तुति दी गई है। इन्द्र को आँधी, तूफान, बिजली, वर्षा का देवता माना गया था। वह आकाश, अन्तरिक्ष और पृथ्वी से भी अधिक बड़ा है।
ऋग्वैदिक युगीन देवियाँ (Rigvedic Goddesses) : ऋग्वेद में देवी शक्ति का उल्लेख मिलता है जिससे यह सिद्ध होता है कि उस युग में देवी की उपासना होती थी।
उपा: आर्यों ने सूर्य उदय होने की स्थिति को उषा मानकर उसकी आराधना की है क्योंकि यह प्रकृति एक दैवी शक्ति के रूप में है।
एकेश्वरवाद और परमतत्व : ऋग्वेद में आर्यों का धार्मिक एवं दार्शनिक विकास तत्व निरूपण के रूप में दिखाई पड़ता है। उन्होंने केश्वरवाद की स्थापना कर उसे सत् के नाम से पुकारा। यह न देवी है और न देवता है अतः यह स्पष्ट हो जाता है। आर्यों ने परम तत्व को ही अपने सत् मान लिया था और उसी से अपना कल्याण समझते थे।
यज्ञ का महत्व : ऋग्वैदिक व्यक्ति अपने देवताओं को प्रसन्न करके ऐहिक सुख प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए वे यज्ञ और द्रव्य के द्वारा भगवान को खुश करते थे और अपनी मनोवांछित इच्छा को पूरा करते थे। इसलिए इस युग में यज्ञों की अत्यधिक प्रधानता थी।
इस युग में भिन्न-भिन्न तरह के यज्ञ प्रचलित थे, अश्वमेघ यज्ञ, राजसूय यज्ञ, देव यज्ञ आदि।
पितृ-पूजा : ऋग्वैदिक आर्यों ने पितरों को भी देवताओं की कोटि में रखकर उपासना की। नैतिकता : ऋग्वैदिक आर्य नैतिकता को विशिष्ट महत्व देते थे, क्योंकि इसी के द्वारा वह अपने आराध्य को प्रसन्न करके पापों से छुटकारा पा जाते थे।
स्वर्ग नरक - ऋग्वेद में स्वर्ग और नरक का उल्लेख हुआ है, प्रत्येक व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग को जाना पसन्द करता है, नरक को नहीं। ऋग्वेद में अमरता का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
पशुपालन (Husbandry) : आर्यों का पशुपालन भी उनकी जीविका का एक आधार था। पशुओं को चराने के लिए चरागाहों का उल्लेख प्राप्त होता है, आर्य पशु धन की वृद्धि के लिए देवताओं से प्रार्थना किया करते थे।
गाय - आर्य लोग गाय को पूज्य तथा अवध्य मानते थे, गाय के दूध को अमृतवत् मानते थे तथा गाय को यज्ञ आदि में दान भी देते थे। गाय क्रय-विक्रय का माध्यम भी थी और गो सुत बड़े होकर कृषि कर्षण का कार्य भी करते थे।
भैंस : ऋग्वैदिक आर्य भैंस को दूध, खाल आदि के प्रयोग के लिए पालते थे, इसका उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है।
भेड एवं बकरी : आर्य लोग ऊन को वस्त्रों के रूप में प्रयोग करते थे इस कारण भेडों को भी पालते थे तथा बकरी को दूध और मांस के लिए पालते थे।
घोड़ा - आर्य लोग युद्ध प्रेमी बहादुर एवं साहसी होने के कारण घोड़ा को पालते थे तथा घोड़े को रथ दौड़ और घुड़दौड़ के रूप में प्रयोग करते थे। घोड़ा भी गाय की भाँति दान में दिया जाता था।
हाथी : हाथियों का भी प्रयोग सेना के लिए किया जाता था।
ऊँट : बालू के जमीन मे चलने तथा व्यापार हेतु ऊँट का प्रयोग किया जाता था। ऋग्वेद में श्लोकों से तत्कालीन अन्यान्य प्रकार के व्यवसायों पर भी प्रकाश पड़ता है।
सोना : ऋग्वेद में कई स्थलों पर हिरण्यगर्म का उल्लेख प्राप्त होता है। सोने के आभूषणों का प्रचलन था, समाज के कुलीन लोग आभूषणों को पहनते थे, दान दक्षिणा में सोने का प्रयोग किया जाता था।
वैद्यक: ऋग्वेद में वैद्यक का भी उल्लेख किया गया है। इस काल का भिषक उच्चकोटि का वैद्य था जिसने अधे को नेत्र और पंगु को गति दे दी थी। एक अन्य स्थान पर भिषक द्वारा हड्डी जोड़ने का भी उल्लेख मिलता है। इन उल्लेखों से स्पष्ट है कि भिषक का व्यवसाय काफी उत्कृष्ट और विकसित था।
व्यापारिक संगठन : ऋग्वेद में व्यापारिक संगठनों के रूप में 'गण' और 'बात' का उल्लेख मिलता है।
व्यापार : ऋग्वैदिक काल में व्यापार विदेशों के साथ हुआ करता था। ऋग्वेद में 100 पतवारों की नाव का समुद्र में चलने का उल्लेख प्राप्त होता था। व्यापार कार्य वणिक लोग करते थे, यह कंजूस भी हुआ करते थे।
व्यापार का माध्यम विनिमय- कभी-कभी व्यापार में गायों और स्वर्ण से भी वस्तुओं का मूल्य आँका जाता था। निष्क नाम के एक आभूषण का मुद्रा के रूप में प्रयोग होता था। कपड़ा, चद्दर, और चमड़ा आदि व्यापार की प्रमुख वस्तुयें थीं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- ऐतिहासिक युग के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का परिचय दीजिए व भारत में उसके बाद विकसित होने वाली सभ्यता व संस्कृति को चित्रित कीजिए।
  3. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहाकार कल्हण व आर. सी. मजूमदार का परिचय दीजिए।
  4. प्रश्न- भारतीय ज्ञान प्रणाली के स्रोत पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- जदुनाथ सरकार, वी. डी. सावरकर, के. पी. जायसवाल का परिचय दीजिए।
  6. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार मृदुला मुखर्जी के बारे में बताइए।
  7. प्रश्न- भारत संस्कृति (भाषाओं) के ज्ञान से अवगत कराइये।
  8. प्रश्न- नृत्य व रंगमंच की भारतीय संस्कृति से अवगत कराइये।
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता से मगध राज्य तक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार विपिनचन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- मध्य पाषाण समाज और शिकारी संग्रहकर्ता पर टिप्पणी कीजिए।
  12. प्रश्न- ऊपरी पुरापाषाण क्रांति क्या थी?
  13. प्रश्न- प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- पाषाण युग की जीवनशैली किस प्रकार की थी?
  15. प्रश्न- के. पी. जायसवाल के विशिष्ट कार्यों से अवगत कराइये।
  16. प्रश्न- वी. डी. सावरकर के धार्मिक और राजनीतिक विचार से अवगत कराइये।
  17. प्रश्न- लोअर पैलियोलिथिक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं? 'हड़प्पा संस्कृति' के निर्माता कौन थे? बाह्य देशों के साथ उनके सम्बन्धों के विषय में आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के आर्थिक जीवन के विषय में विस्तारपूर्वक बताइये।
  21. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर-विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  28. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  30. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  31. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  35. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विनाश के क्या कारण थे?
  36. प्रश्न- लोथल के 'गोदी स्थल' पर लेख लिखो।
  37. प्रश्न- मातृ देवी की उपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- 'गेरुए रंग के मृदभाण्डों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- 'मोहन जोदडो' का महान स्नानागार' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  41. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  45. प्रश्न- वैदिक साहित्य के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- ब्रह्मचर्य आश्रम के कार्य व महत्व को समझाइये।
  47. प्रश्न- वानप्रस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  48. प्रश्न- सन्यास आश्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- मनुस्मृति में लिखित विवाह के प्रकार लिखिए।
  50. प्रश्न- वैदिक काल में दास प्रथा का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- पुरुषार्थ पर लघु लेख लिखिए।
  52. प्रश्न- 'संस्कार' पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- गृहस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  54. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- वैदिककाल में विवाह तथा सम्पत्ति अधिकारों की क्या स्थिति थी?
  57. प्रश्न- उत्तर वैदिककाल की राजनीतिक दशा का उल्लेख कीजिए।
  58. प्रश्न- विदथ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- ऋग्वेद पर टिप्पणी कीजिए।
  60. प्रश्न- आर्यों के मूल स्थान पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- 'सभा' के विषय में आप क्या जानते हैं?
  62. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  63. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न. बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
  67. प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
  71. प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए।
  74. प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- सुदर्शन झील पर टिप्पणी लिखिए।
  78. प्रश्न- अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि वह किस प्रकार सिंहासन पर बैठा था?
  79. प्रश्न- सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
  81. प्रश्न- अशोक के शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
  84. प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
  85. प्रश्न- सारनाथ स्तम्भ लेख पर टिप्पणी कीजिए।
  86. प्रश्न- बृहद्रथ किस राजवंश का शासक था और इसके विषय में आप क्या जानते हैं?
  87. प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में उल्लेखित विषयों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  91. प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
  94. प्रश्न- कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्य को समझाइए।
  95. प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  96. प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
  99. प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
  100. प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
  101. प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  107. प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
  109. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आपसूक्ष्म में बताइए।
  110. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  111. प्रश्न- मिहिरभोज की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न-
  114. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम के शासन-काल का विवरण दीजिए।
  115. प्रश्न- वत्सराज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास में नागभट्ट द्वितीय के स्थान का मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- मिहिरभोज की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार सत्ता का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों का विघटन पर प्रकाश डालिये।
  120. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए।
  121. प्रश्न- महेन्द्रपाल प्रथम कौन था? उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। उत्तर -
  122. प्रश्न- राजशेखर और उसकी कृतियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  123. प्रश्न- राज्यपाल तथा त्रिलोचनपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में प्रतिहारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  125. प्रश्न- कन्नौज के प्रतिहारों पर एक निबन्ध लिखिए।
  126. प्रश्न- प्रतिहार वंश का महानतम शासक कौन था?
  127. प्रश्न- गुर्जर एवं पतन का विश्लेषण कीजिये।
  128. प्रश्न- कीर्तिवर्मा द्वितीय एवं बादामी के चालुक्यों के अन्त पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- चालुक्य राज्य के अंधकार काल पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- पूर्वी चालुक्य शासकों ने कला और संस्कृति में क्या योगदान दिया है?
  131. प्रश्न- चालुक्य कौन थे? इनकी उत्पत्ति के बारे में बताइए।
  132. प्रश्न- वेंगी के पूर्व चालुक्यों पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- चालुक्यकालीन धर्म एवं कला का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- चालुक्यों की विभिन्न शाखाओं का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- चालुक्य संघर्ष के विषय में आप क्या जानते हैं?
  136. प्रश्न- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की शक्ति के प्रसार का विवरण दीजिए।
  137. प्रश्न- चालुक्यों की उपलब्धियों के महत्व का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चालुक्यों की शासन व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- चालुक्य- पल्लव संघर्ष का विवरण दीजिए।
  140. प्रश्न- परमारों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- राजा भोज के शासन काल में चतुर्दिक उन्नति हुई।
  142. प्रश्न- परमार नरेश वाक्पति II मुंज के शासन काल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  143. प्रश्न- राजा भोज के शासन प्रबंध के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइए।
  144. प्रश्न- परमार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए तथा इस वंश का पतन क्यों हुआ?
  145. प्रश्न- परमार साहित्य और कला की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- परमार वंश का संस्थापक कौन था?
  147. प्रश्न- मुंज परमार की उपलब्धियों का आंकलन कीजिए।
  148. प्रश्न- 'धारा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  149. प्रश्न- सीयक द्वितीय 'हर्ष' के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- सिन्धुराज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  151. प्रश्न- परमारों के पतन के कारण बताइए।
  152. प्रश्न- राजा भोज एवं चालुक्य संघर्ष का वर्णन कीजिये।
  153. प्रश्न- राजा भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
  154. प्रश्न- परमार इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
  155. प्रश्न- भोज परमार की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  156. प्रश्न- परमारों की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
  157. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  158. प्रश्न- अर्णोराज चाहमान के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  159. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए। मोहम्मद गोरी के हाथों उसकी पराजय के क्या कारण थे? उल्लेख कीजिए।
  160. प्रश्न- चाहमान कौन थे? विग्रहराज चतुर्थ के विजयों का वर्णन कीजिए।
  161. प्रश्न- चाहमान कौन थे?
  162. प्रश्न- विग्रहराज द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  163. प्रश्न- अजयराज चाहमान की उपलब्धियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  164. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  165. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  166. प्रश्न- पृथ्वीराज और जयचन्द्र की शत्रुता पर प्रकाश डालिये।
  167. प्रश्न- ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पृथ्वीराज रासो के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  168. प्रश्न- चाहमान वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  169. प्रश्न- चाहमानों के विदेशी मूल का सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  170. प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के चन्देलों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  171. प्रश्न- गोविन्द चन्द्र गहड़वाल की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  172. प्रश्न- गहड़वालों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  173. प्रश्न- जयचन्द्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  174. प्रश्न- अर्णोराज के राज्यकाल की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  175. प्रश्न- चाहमानों (चौहानों) के राजनीतिक इतिहास का वर्णन कीजिए।
  176. प्रश्न- ललित विग्रहराज नाटक पर नोट लिखिए।
  177. प्रश्न- चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय के तराइन युद्धों का वर्णन कीजिए।
  178. प्रश्न- चौहान वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  179. प्रश्न- सामंतवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  180. प्रश्न- सामंतवाद के पतन के कारण बताइए।
  181. प्रश्न- प्राचीन भारत में सामंतवाद की क्या स्थिति थी?
  182. प्रश्न- मौर्य प्रशासन और सामंतवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  183. प्रश्न-
  184. प्रश्न- वेदों की उत्पत्ति के विषय में बताइए। वेदों ने हमारे जीवन को किस प्रकार के ज्ञान दिये?
  185. प्रश्न- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए
  186. प्रश्न- हिन्दू वर्ग की जाति-व्यवस्था व त्योहारों के विषय में बताइए।
  187. प्रश्न- 'लिंगायत'' के बारे में बताइए।
  188. प्रश्न- हिन्दू धर्म के सुधारकों के विषय में बताइए।
  189. प्रश्न- हिन्दू धर्म में आत्मा से सम्बन्धित विचारों से अवगत कराइये।
  190. प्रश्न- हिन्दुओं के मूल विश्वासों से अवगत कराइए।
  191. प्रश्न- उपवास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  192. प्रश्न- हिन्दू धर्म में लोगों के गाय के प्रति कर्तव्य से अवगत कराइये।
  193. प्रश्न- हिन्दू धर्म में
  194. प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमण का वर्णन कीजिए।
  195. प्रश्न- मुहम्मद गोरी की भारत विजय के कारणों की सुस्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  196. प्रश्न- राजपूतों के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
  197. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  198. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
  199. प्रश्न- भारत पर मुहम्मद गोरी के आक्रमण के क्या कारण थे?
  200. प्रश्नृ- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी?
  201. प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
  202. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारत की आर्थिक स्थिति पर टिप्पणी लिखें।
  203. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारतीय शासकों के तुर्कों से पराजय के क्या कारण थे?
  204. प्रश्न- भारत में तुर्की राज्य स्थापना के क्या परिणाम हुए?
  205. प्रश्न- मुहम्मद गोरी का चरित्र-मूल्यांकन कीजिए।
  206. प्रश्न- अरबों की असफलता के क्या कारण थे?
  207. प्रश्न- अरब आक्रमण का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
  208. प्रश्न- तराइन के प्रथम युद्ध पर प्रकाश डालिए।
  209. प्रश्न- भारत पर तुर्कों के आक्रमण के क्या कारण थे?
  210. प्रश्न- महमूद गजनवी का आनन्दपाल पर आक्रमण का वर्णन कीजिये।
  211. प्रश्न- महमूद गजनवी का कन्नौज पर आक्रमण पर प्रकाश डालिये।
  212. प्रश्न- महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ का विध्वंस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। [
  213. प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमण के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  214. प्रश्न- भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामों पर टिप्पणी कीजिए।
  215. प्रश्न- मोहम्मद गोरी की विजयों के बारे में लिखिए।
  216. प्रश्न- भारत पर तुर्की आक्रमण के प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।

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